Monday, September 3, 2018

च्यवन ऋषि की तपोभूमि पर चंद्रकेश्वर महादेव, दुनिया का एकमात्र मंदिर जहां बारह महीने जलमग्न रहता है शिवलिंग

च्यवन ऋषि की तपोभूमि पर चंद्रकेश्वर महादेव, दुनिया का एकमात्र मंदिर जहां बारह महीने जलमग्न रहता है शिवलिंग

चंद्रकेश्वर महादेव

सावन में शिव आराधना के साथ प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठाने का मन हो तो च्यवन ऋषि की तपोभूमि पर चंद्रकेश्वर महादेव मंदिर खास है। इंदौर शहर से 70 किलोमीटर दूर नेमावर रोड पर च्यवन ऋषि की तपोभूमि पर चंद्रकेश्वर महादेव मंदिर है।इस मंदिर का शिव भक्तों के बीच खास स्थान है। यहां भगवान का शिवलिंग बारह महीने जलमग्न रहता है। मुख्य मंदिर के साथ राम दरबार और हनुमानजी का मंदिर भी है। प्रकृति प्रेमियों के लिए यहां के वादियां खास आकर्षण का केंद्र हैं। मंदिर से जुड़े लोग बताते है कि मंदिर कितना पुराना है यह बताना मुश्किल है, लेकिन इस देवस्थान का उल्लेख भागवत पुराण में भी मिलता है। मंदिर जाने के लिए नेमावर रोड पर डबल चौकी, चापड़ा से होते हुए ग्राम करोंदिया पहुंचना होगा। मंदिर के समीप ही चंद्रकेश्वर नदी बहती है। पास ही एक झरना है। दो एकड़ में फैले मंदिर परिसर में दो चौकियां भी हैं। इसमें लोग स्नानकर भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। यहां चार गुफाएं भी हैं। इनके बारे में बताया जाता है यह करीब 500 साल पुरानी हैं। परिसर में निवास के लिए धर्मशालाएं बनी हुई हैं। इन धर्मशालाओं में करीब 500 लोगों के ठहरने की व्यवस्था है। मुख्य मंदिर से लगा घना वटवृक्ष है और पास से ही चंद्रेकेश्वर नदी गुजरती है जो आगे जाकर चंद्रकेश्वर डैम में मिलती है। यहां बड़ी संख्या में बंदर भी हैं।
 
चंद्रकेश्वर महादेव

चंद्रकेश्वर महादेव
मंदिर के पुजारी के अनुसार च्यवन ऋषि ने यहां तपस्या की थी ,वे रोज स्नान के लिए ६० किलोमीटर नर्मदा तट पर जाते थे |ऐसी मान्यता है की उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर स्वम माँ नर्मदा ने उन्हें दर्शन दिये थे और कहा था की मै स्वं साक्षात प्रकट हो रही हूँ |इस पर ऋषि ने कहा की मै कैसे समझ पाउँगा की आप स्वं मरे मंदिर मे प्रकट हुई है |इसके बाद उन्होंने अपना गमछा नर्मदा तट पर छोड़ दिया,और अगले दिन मंदिर मे जलधारा फुट पड़ी और उनका गमछा शिव जी पर लिपटा हुआ मिला|मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार यहां शिवलिंग की स्थापना च्यवन ऋषि ने की थी। च्यवन ऋषि के आह्वान पर मां नर्मदा गुप्त रूप से प्रकट हुई थीं और शिवलिंग का प्रथम अभिषेक किया था। तभी से यहां एक वटवृक्ष से जलधारा निकलती है, जिससे शिवलिंग जलमग्न रहता है। ऐसा कहा जाता है कि च्यवन ऋषि ने इस भूमि पर तप किया।

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